प्रभु की बाल लीला एवं माखन चोरी कथाओं को विस्तार से बताया-मनुष्य को निष्काम रहने से दर्शन कराते हैं

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रायपुर। पुरानी बस्ती मैथिल पारा में खो-खो पारा स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर के पूर्व अध्यक्ष स्व सूर्यकुमार अग्रवाल अधिवक्ता के निवास में जारी श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन प्रवचन कर्ता ने प्रभु की बाल लीला, माखन चोरी की कथाओं को विस्तार से बताया। दंतेश्वरी मंदिर के अध्यक्ष पं विजय कुमार झा ने बताया है कि पुरानी बस्ती में चल रहे श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिवस में जगद्गुरू द्वाराचार्य मलुकपीठाधीश्वर श्वामि श्री डॉ राजेंद्र दास जी महाराज के चरणानुरागी शिष्य आचार्य प.मनोज कृष्ण शास्त्री (गुरुचरण दास) (श्री धाम वृंदावन) महराज जी ने कथा में भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में बताया। महराज जी ने कहा कि भगवान की प्रथम बाल लीला माखन चोरी की लीला है। वास्तव में रसिकों की चित्त की चोरी ही माखन चोरी लीला है। भगवद्प्रेमी भगवादनुरागी की चित्त की चोरी करना ही माखन चोरी की लीला है। 
 
महराज जी ने बताया कि माखन  रूपी चित को चुराना ही भगवान की सबसे सुंदर लीला है। महराज  जी ने  कहा कि जिस प्रकार से माखन बनाने की विधि है उसी प्रकार से चित्त रूपी माखन भी कैसे बनता है यह जानना आवश्यक है। महराज जी ने बताया कि हमारा ह्रदय ही पात्र है। हृदय रूपी पात्र कामना रूपी खटाई से रहित करके निष्काम बनाये अर्थात पात्र को स्वच्छ करले फिर उस पात्र को गीता रामायण,भागवत, सत्संग-कथा रूपी गोरस से भर ले उसके पश्चात जब सत्संग से भगवान को जान जाए तो भगवान के दर्शन के लिए उसे पाने के लिये मन व्याकुल हो जाये  अर्थात सत्संग रूपी गोरस से भरा  हृदय रूपी पात्र को गर्म करने के लिए सत्संग रूपी दुग्ध को उबलने के लिए अग्नि चाहिए वह अग्नि क्या है। भगवान को पाने की व्याकुलता भगवान की विरहाग्नि ही वह अग्नि है। जिसमे वह दुग्ध को उबालना है फिर धीरे धीरे समता में उसे औटाना है। फिर किसी महापुरुष भगवादनुरागी के चरणों में जाकर विनती करना है कि हमें भगवान को प्राप्त करने का मार्ग बताये,अर्थात गुरु ही वह जामन है जिससे हम उबले हुए दुग्ध में जामन डालकर दही बनाएंगे। 
 
गुरु जो हमें मंत्र देंगे वही जामन है जिसे हृदय रूपी पात्र में भरा हुआ  सत्संग रूपी दुग्ध जो कि विरहाग्नि में उबला हुआ है। गुरु मंत्र रूपी जामन डालने से जो दही बनता है उसे विचारों की मथानी में मथना है, फिर उसमें प्रेमवारि, प्रेम रूपी जल डालना है जिससे कर्म, ज्ञान और योग रूपी छाछ नीचे रह जाएगा और सार सार माखन ऊपर आ जायेगा यही माखन रूपी चित्त है। महराज जी ने यह भी बताया कि पूरे 7 दिन तक भगवान अपने कनिष्ठ अंगुली से गोवर्धन महराज को उठा कर रखे थे। तो 7 दिन तक भगवान कुछ नहीं खाये थे और माता यशोदा भगवान को एक दिन में 8 बार खिलाती है इसलिए 7 दिन के बाद सातों दिन का भोग माता यशोदा एक दिन में ही खिलाती है इसलिये 56 प्रकार के भोग भगवान को  लगाने का विधान है।इसप्रकार से महराज जी गोवर्धन लीला का वर्णन करते हुए भजन से श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिए।