सुदामा गरीब ब्राह्मण या भिखारी नहीं अपितु प्रभु का सच्चा मित्र था-आचार्य मनोज कृष्ण शास्त्रीसुदामा गरीब ब्राह्मण या भिखारी नहीं अपितु प्रभु का सच्चा मित्र था-आचार्य मनोज कृष्ण शास्त्री

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कथा स्थल पुरानी बस्ती मैथिल में दंतेश्वरी मंदिर खोखो पारा स्थित सार्वजनिक न्यास के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय एसके अग्रवाल के निवास में जारी श्रीमद् भागवत कथा में आज कृष्ण सुदामा की मित्रता का विस्तार से वर्ण किया गया। दंतेश्वरी मंदिर के अध्यक्ष प विजय कुमार झा ने बताया है श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ केसप्तम दिवस को जगद्गुरू द्वाराचार्य मलुकपीठाधीश्वर श्वामि श्री डॉ राजेन्द्र दास जी महाराज के चरणानुरागी शिष्य आचार्य पं. मनोज कृष्ण शास्त्री (गुरुचरण दास)(श्री धाम वृंदावन) महराज जी ने कथा में कहा कि नेक काम में तकलीफ आती है। इसलिए अगर नेक कार्य करते समय तकलीफ मिले तो समझ लेना कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं। नेक काम करने वाली की भगवान स्वंय मदद करते हैं। महराज जी ने कहा कि भजन ,कीर्तन, सत्संग और भगवान की पूजा के लिए विशेष समय निकालें क्योंकि यदि हम भगवान के लिए समय नहीं निकाले तो भगवान के पास भी हमारे लिए समय कहाँ से आएगा आप भगवान को समय दो वो आप को समय देगा। आप भगवान की चिंतन करें भगवान आपकी चिंता करेगा। आप भगवान को अपना सर्वस्व माने भगवान आपके सर्वस्व संबंधो को अपना मानेगा। इस प्रकार से हम अगर अपना सब कुछ भगवान के श्री चरणों में अर्पित कर देंगे तो भगवान हमपर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देगा इसमें कोई संशय नहीं है। अगर हम अभी से नहीं लगे इस काम मे तो हमारा अंत बहुत दुःखदायीं होगा।निरंतर भगवान की भक्ति करने से अनजाने में किये गए पाप भी समाप्त होने लगते हैं। जैसे खौलते तेल की कढ़ाई में पानी का छीटा मारने से पानी जल जाता है लेकिन गगरा भर कर पानी डालने पर वह देर तक जलने लगता है।उसी प्रकार ज्यादा पाप करने वाले को पाप भोगने पड़ते हैं।महराज जी ने कहा कि भक्ति का मार्ग कठिन जरूर है परंतु मुश्किल नहीं। व्यक्ति को हमेशा शिष्य बन कर रहना चाहिए ताकि अपने भीतर को टटोलते रहे कि कहीं कोई विकार तो नहीं रह जाये और सदा जीवन में कुछ ना कुछ सीखते रहे।आत्मा का देह को छोड़ने के पश्चात मनुष्य के साथ केवल उसका कर्म जाता है इसलिए कर्म अच्छा रखें‌। सत्संग करते रहें जिससे कोई विकार या अज्ञानता मनुष्य के भीतर ना रहे क्योंकि निश्छल, निष्कपट, निष्काम आत्मा ही परमात्मा में विलीन होता है।अतः जितना हो सके धर्म के संचय का प्रयत्न करें। 

महराज जी ने सुदामा चरित की कथा की ओर प्रकाश डालते हुए बताया कि सुदामा और भगवान कृष्ण की मित्रता जैसा दूसरा उदाहरण किसी भी युग में और नहीं है। लोगों में यह भ्रांतियां फैली है कि सुदामा गरीब ब्राह्मण था दीनहीन था परन्तु यह सर्वथा गलत है जिसका भगवान ही स्वयं मित्र हो क्या वह गरीब हो सकता है कतई नहीं। जब हम भगवान से सम्बंध जोड़ते हैं तो हमारे जीवन में मंगल ही मंगल होते हैं तो जब भगवान स्वंय किसी से सम्बन्ध जोड़े तो उसका कितना मंगल होगा।महराज जी ने कहा कि आप सभी को पता है कि माता यशोदा को कृष्ण की माँ के नाम से जानते हैं, बाबा नंद को उनके बाबा के नाम से वैसे ही सुदामा को उनके सखा के नाम से जानते हैं, कहने का तात्पर्य यह कि ये सभी संबंध भगवान ने स्वयं जोड़े हैं तो सोचिए कि भगवान कृष्ण के मित्र पर क्या भगवान की कृपा नहीं थी जो दीनहीन थे।महराज जी ने बताया कि विद्या अध्ययन हेतु भगवान और सुदामा दोनों जब आश्रम में रह रहे थे तब एक दिन की बात है एक चोर एक गरीब बुढ़िया की भूख मिटाने की एक मात्र साधन भीगे हुए चने की पोटली को चुराकर भाग रहा था और आश्रम पहुचते ही पकड़े जाने के डर से वहीं फेक देता है जिसे सुदामा देख लेता है और पकड़ लेता है भगवान के पूछने पर भी वो सच न बताकर झूठ कहते हैं क्योंकि अपनी योग शक्ति से सुदामा ने देख लिया था कि वह चना श्रापित है उस बुढ़िया ने पोटली के चोरी होने पर दुखी होकर श्राप दिया था कि जो भी उस चने को खायेगा वह कंगाल हो जाएगा। इसलिए सुदामा ने सोचा कि इस चने को यदि मेरे भगवान ने खाया तो उसकी पूरी समृद्धि का नाश हो जाएगा फिर इस द्वारिका का क्या होगा संसार का क्या होगा सभी दीनहीन हो जाएंगे मैं अपने भगवान को दीनहीन दशा में नहीं देख सकता और इस चने की पोटली को फेंक दू तो जो भी जीव इसको खायेगा वह भी श्राप से पीड़ित हो जाएगा इसलिए सुदामा ने भगवान पर और सभी जीवों पर कृपा करते हुए उस पूरे चने को स्वंय ही खा गए। इसलिए श्रापित चने के कारण ही सुदामा को तकलीफ सहना पड़ा। महराज जी ने कहा कि जब सुदामा सब कुछ जानता था तो क्या भगवान को ज्ञात नहीं होगा ,भगवान भी सब कुछ जानते थे परंतु चुप इसलिए थे क्योंकि वो सुदामा को उस समय अगर कुछ देते तो कम देते परन्तु बाद में जब वो द्वारिकाधीश बने तो एक दूसरी द्वारिका के राजा बना दिये सुदामा को। भगवान ने उसी समय सुदामा पर कृपा कर दी थी,अर्थात सुदामा के भाग्य को बदल दिए थे। इसप्रकार से महराज जी बताया कि जिसप्रकार से समय आने पर भगवान ने सुदामा को वैभव प्रदान किये उसी प्रकार से प्रत्येक मनुष्य को भी भगवान निश्चित समय में ही सब कुछ प्रदान करते हैं।किंतु यह तभी सम्भव है जब हम भी भगवान के लिये कुछ करें अर्थात निरन्तर, नित्य -प्रतिदिन हरि भजन और सत्संग करते रहें तो निश्चित ही हमारे जीवन में भी सबकुछ भगवान मंगल ही करेंगे।महराज जी कहा कि जीवन में धन की सम्पन्नता ही सब कुछ नहीं है। जिसके पास संतोष है वही सबसे बड़ा धनवान है। इस प्रकार 7 दिवस तक जो श्रीमद् भागवत कथा सुनते हैं उन्हें परीक्षित की भांति मोक्ष की प्राप्ति होती है।